शनिवार, 5 मार्च 2016

पड़ोसन

पड़ोसन 

हाए रे  मेरी पड़ोसन 
सफ़ेद रसगुल्ला ,
आधुनिकता मैं लिपटी हुई 
खुल्लम खुल्ला ,,

दो बच्चे , उम्र 30 से ज्यादा 
कोई कह नहीं सकता ,
लंगूर के हाथ अंगूर 
भैया को देख कोई चुप रह नहीं सकता ,,

क्या शादी शुदा क्या कुंवारे 
हर कोई पीछे पड़ा था  ,
ये पहलवान भी 
पहले नंबर पर खड़ा था,, 

कभी पानी कभी अख़बार 
रोज नया बहाना ,
धीरे धीरे चालू हो गया 
उनके घर आना जाना ,,

बच्चो के लिए कंप्यूटर 
भैया को महँगा मोबाइल, 
मेरा तीन महीने का वेतन 
भाभी की एक स्माइल ,,

ब्रांडेड कपडे कीमती ज्वैलरी 
पिज्जा बर्गेर की दीवानी ,
देवर जी आप बड़े वो हो 
भाभी थी बड़ी सायानी ,,

हर दुकान पर  काटने लगा 
मेरे नाम का पर्चा  ,
दो किलो प्याज रोज 
उनके घर का खर्चा ,,

खत्म जो  गया  कैश 
बिक गए जेवर ,
नेताओ की तरह बदल गए 
भाभी के तेवर ,,

कल तक था जो प्यारा देवर 
आज गुंडा और बदमाश ,
फिर से नया मोबाइल 
अबकी बार शर्मा जी ख़ास ,,


दूर खड़े हो कर हम 
बस तमाशा देख रहे थे ,
शर्मा वर्मा विश्कर्मा 
दाने  देख रहे थे ,,


सोच रहा था इतना 
क्यों एतबार क्या गैरो पर ,
मारी थी कुल्हाड़ी हमने 
खुद अपने पैरो पर ,,

चुल्लू भर पानी मैं डूब मरू 
अपनी नजरो मैं , इस कदर शर्मशार  था ,,
फिर भी साथ खड़ी थी, मेरी काम खूबसूरत  बीवी 
और साथ खड़ा पूरा परिवार था 
और साथ खड़ा पूरा परिवार था