शुक्रवार, 23 दिसंबर 2022

मेरा बचपन

 


दस  पैसे बीस पैसे के

रंग बिरंगे कम्पट 

क्या कहे अपने मेरे बारे में

हम थे निरीह  लम्पट


कटी  पतंग के पीछे 

सरपट दौड़ना 

पीछे से पेन्सिल को

दातों से तोडना 


स्कूल  न जाने का 

रोज नया बहाना

मुश्किल काम था 

मां के लिए हमको जगाना 


प्यारी लगती थी चाचा चौधरी 

चन्दा मामा की कहानी 

सोचते थे कब बड़े होंगे 

कब आएगी जवानी 


आज रुक रुक कर 

बचपन याद आ रहा है 

समय तो समय है

पल पल हाथ से जा रहा है ।।