गुरुवार, 10 अक्टूबर 2019

विपाशा


कल रात

सपनो में आयी विपाशा

तनिक भी नहीं थी

जिसकी मुझे आशा 


मेनका को मात देती

उसकी मुस्कान

ऊपर से नीचे तक

सुंदरता की खान


अच्छो अच्छो की

तपस्या कर दे भंग

स्वप्न सुंदरी को

सम्मुख देख मैं दंग


इशारो इशारो में

भेज रही थी सन्देश

हम दोनों के मिलन में

क्या रह गया शेष


तुमने मेरे मन में

ऐसी आग लगाई

सारी शूटिंग कैंसिल कर

तुम्हारे पास आयी 

शब्दों के चला रही थी

मीठे मीठे तीर

खुद को समझने लगा राँझा

उसको हीर


अचानक विलेन की तरह

जॉन ने इंट्री मारी

धरी की धरी रह गई

मेरी सारी होशियारी


दौड़ा दौड़ा कर 

उसने मुझे कूटा

खटिया से गिरकर

मेरा सपना टूटा


आँख खोल कर देखा

सामने मेरे बापू खड़े थे

पुरे शरीर में मेरे

जूते के निशान पड़े थे


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