माँ ! माँ !! माँ!!
मैं भूखा हूँ एक रोटी दे दो
माँ चुप क्यों हो , कुछ
तो कह दो
पूरा घर दाने
- दाने को
मोहताज था
महीनों से ना उनके पास कोई काज था
सुन बेटे की बाते माँ की आखे भर आयी
क्या करू , ये सोच वो पगली
घबराई
कही से कुछ लाती हूँ बेटे को दिलायी आस
बाहर से खाना लेकर मैं आती हूँ तेरे
पास ।
माँ की ममता गली – गली मे भटक रही
थी
गाली बन कर वो समाज को खटक रही थी
एक सौदागर उससे सौदे को तैयार
था
इज्जत से ज्यादा माँ को , बेटे से
प्यार था
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