शनिवार, 21 सितंबर 2019

मैं भूखा हूँ


माँ ! माँ !! माँ!!

मैं भूखा हूँ एक रोटी  दे दो

माँ चुप क्यों हो , कुछ तो कह दो

पूरा घर दाने - दाने को मोहताज था

महीनों से ना उनके पास कोई काज था

सुन बेटे की बाते  माँ की आखे भर आयी

क्या करू , ये सोच वो पगली घबराई

कही से कुछ लाती हूँ  बेटे को  दिलायी आस

बाहर से खाना लेकर मैं आती हूँ तेरे पास

माँ की ममता गलीगली मे भटक रही थी

गाली बन कर वो समाज को खटक रही थी

एक सौदागर उससे सौदे को तैयार था

इज्जत से ज्यादा माँ को , बेटे से प्यार था

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