एक बार रावण ने
भारत घूमने का मन बनाया
पूरी रंगबाजी के साथ
वो नीचे आया
यहाँ पर उसको
अपने से बड़े बड़े रावण
नजर आ रहे थे
जो बिना दस सरो के
आतंक मचा रहे थे
विभीषणों की फ़ौज देख कर
वो हैरान था
मन ही मन सोच रहा था
वो तो सिर्फ
एक विभीषण से परेशान था
जो अपने ही घर को
अपने हाथो से तोड़ रहे थे
कभी जाती कभी मजहब
जाने कैसे कैसे बम फोड़ रहे थे
जिस नारी के पीछे
उसका सतयुग में हुआ था अंत
वो नारी तो अब
कपड़ो से थी पूरी तरह स्वतंत्र
छोटे छोटे कपडे पहन कर
रावण के चारो तरफ मडरा रही थी
किसी के हाथ में सिगरेट
तो कोई पिज़्ज़ा खा रही थी
बेचारा रावण खुद ही
अपनी नजरो में शरमा गया
कही दृष्टि भ्रम तो नहीं
ये सोच कर वो भरमा गया
तभी मेरी हुई उससे मुलाकात
मैंने बोली एक बात
भाई साहब
ना जाने कितने माँ बाप
अपने परिवार के लिए
बृद्धाश्रम में खून के आँसू रो रहे है
आप कैसे इतने सारे सरो का बोझ
अपने नाजुक कंधो पर ढो रहे है
कहने लगा तुम इंसान
मान मर्यादाओ की
सारी सीमाएं तोड़ रहे हो
अपने घर की
बहु बेटियों को भी नहीं छोड़ रहे हो
जल्दी से मेरे ऊपर जाने के लिए
एक उड़न खटोले का कर इंतजाम
नहीं तो दशहरे से पहले
मैं खुद अपने हाथो से कर लूँगा
अपना काम तमाम
मैंने कहा , भाई साहब
फ्री का उड़न खटोला सिर्फ कलियुग के
एक सर वाले रावण को एलाऊ है
जो आपकी तरह भूखा नंगा नहीं
बहुत बड़ा खाऊ है
किसी तरह जुगाड़ कर
मैंने रावण की धरती से करी विदाई
जाते जाते कह रहा था ,
तुम इंसानो के बीच तो
रावण का रहना भी मुश्किल भाई ,
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